किशोरावस्था (10-19 वर्ष) वाल्यावस्था और वयस्कता के बीच की नाजुक अवस्था है । इस अवस्था में उत्तेजना,साहस, भावुकता और काम के प्रति उत्सुकता स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होती है। यदि इस अवस्था में होने वाले परिवर्तनों को सही तरीके से नहीं समझा जाये तो किशोर किशोरियाँ गलत रास्ते या भटकाव भरे जीवन में जा सकते है। अत: यौन शिक्षा के माध्यम से किशोरों को किशोरावस्था में होने वाले शारीरिक, मानसिक व भावनात्मक तथा सामाजिक परिवर्तनों, यौन एवं यौन संक्रमित रोगों की वैज्ञानिक जानकारी दी जाना आवश्यक है। जिससे उनका शरीर स्वस्थ्य रहे और वे अज्ञानता और भ्रमों से बच सकें।
प्रजनन स्वास्थ्य क्या हैं ?
आमतौर पर प्रजनन स्वास्थ्य का मतलब है, प्रजनन से संबंध रखने वाले सभी मामलों एवं अंगों का सही काम करना तथा उनके स्वस्थ्य रहने से है। साथ ही प्रजनन स्वास्थ्य में संतोषजनक और सुरक्षित लैंगिक जीवन, शिशु प्रसवन क्षमता और इस संबंध में स्वेच्छा से कब और कितने अंतराल पर ऐसा किया जाये, यह निर्णय लेने की स्वतंत्रता शामिल है।
प्रजनन क्या हैं ?
सभी सजीव प्रजनन करते हैं। प्रजनन को उस प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसके द्वारा कोई जीव अपनी जाति को बनाये रखता है। स्त्री और पुरूष प्रजनन प्रणाली का अंतर प्रजनन चक्र में प्रत्येक व्यक्ति की भूमिका के कार्य निष्पादन पर आधारित है।
मानव प्रजनन प्रक्रिया में दो तरह की लिंग कोशिकाएं संबद्ध है : पुरूष (शुक्राणु) और स्त्री (डिम्ब)। स्वस्था और लैंगिक दृष्टि से परिपक्व पुरूष लगातार शुक्राणु पैदा करते है। जब एक युवती स्त्री 12 या 13 वर्ष की तरूणावस्था को प्राप्त कर लेती है तो प्रत्येक 28 दिन के बाद उसे डिम्वाशय एकांतर रूप से एक डिम्ब विस्तृत करते करते है । यह प्रक्रिया तब तक चलती रहती है जब तक स्त्री का मासिक धर्म समाप्त नहीं हो जाता, सामान्यत: 50 वर्ष की उम्र तक।
स्त्री को अपने डिम्ब के गर्भधारण के लिए एक पुरूष की आवश्यकता होती है। शुक्राणु और डिम्ब, स्त्री की गर्भाशय नली में मिलते है और एक नये व्यक्ति की रचना आरंभ करते है। इसके बाद स्त्री उस संतान को गर्भावस्था से शिशुजन्म तक धारण करती है।
महिला के प्रजनन तंत्र की संरचनाः
स्त्री के शरीर के जिन अंगों में गर्भधान एवं शिशु का विकास होता है उसे प्रजनन अंग कहा जाता है. इन अंगों को दो भागों में बांटा जा सकता है.
1. बाहरी प्रजनन अंग
2. अंदरुनी प्रजनन अंग
बाहरी प्रजनन अंगः
बाहरी प्रजनन अंग मे योनि द्वार प्रमुख होता है यह मूत्र द्वार एवं मल द्वार के बीच स्थित होता है और माहवारी आने का मार्ग होता है
स्त्री की योनि दो प्रकार के होठों से ढकी रहती है उन्हें "बडे भगोष्ठ" और "छोटे भगोष्ठ" के नाम से जाना जाता है. यह मूत्र द्वार, योनि द्वार एवं टिटनी ( क्लिटोरीस ) को ढके रहतें हैं तथा उन्हें सुरक्षित रखतें हैं.
टिटनी ( क्लिटोरीस)- यह मांस के एक छोटे दाने की तरह होता है, जो मूत्र द्वार के ठीक उपर की तरफ स्थित होता है जहॉ दोनों बडे भगोष्ठ मिलते हैं. यह उत्तेजना का मुख्य बिन्दु होता है और जब इसे छुआ जाता है तो स्त्री को सुख की अनुभूती होती है.
अंदरुनी प्रजनन अंगः
1. योनिः गर्भाशय से शुरु होकर योनि के मुख तक जाने वाला मार्ग है, जिससे जन्म के समय बच्चा बाहर आता है. यहीं माहवारी का मार्ग है तथा वह् जगह है जहां संभोग के समय पुरुष का शिश्न प्रवेश करता है.
2. गर्भाशय मुखः गर्भाशय मुख को गर्भाशय ग्रिवा भी कहते हैं. यह प्रायः बहुत छोटा छिद्र होता है और गर्भाशय को योनि मार्ग से जोडता है. शिशु जन्म के समय गर्भाशय मुख स्वतः हीं खुलकर चौडा हो जाता है, ताकि शिशु योनि मार्ग से होता हुआ बाहर आ जाए.
3. गर्भाशयः यह नाशपाती के आकार का मांसपेशियों का बना एक खोखला अंग है, जिसमें शिशु विकसित होता है. जब स्त्री का अंडाणु निषेचित होकर गर्भाशय में अंर्तस्थापित नहीं हो पाता तो गर्भाशय की अंदरुनी परत हर माह झड कर बाहर आती है जो रक्त के समान दिखाई देती है. इसे हीं माह्ववारी या मासिक धर्म कहते हैं.
4. फैलोपियन ट्यूब्सः यह गर्भाशय के उपरी भाग से निकलने वाली दो नलिकाएं है जो अंडाशय से गर्भाशय को जोडती है. इससे हीं स्त्री के अंडाशय से अंडा निकलकर गर्भाशय तक पहुंचता है. यहीं वह जगह है जहां अंडे के साथ पुरुष का शुक्राणु मिलकर उसे निषेचित करता है.
5. अंडाशयः यह पेट के निचले हिस्से, जिसे पेडु के नाम से भी जाना जाता है, मे स्थित दो अंडाकार अंग है. इस अंग को बीजदानी के नाम से भी जाना जाता है तथा इसमें जन्म से हीं 3 लाख से 5 लाख तक अंड कोशिकाएं होती है. यह स्त्री के यौन हार्मोनस इस्ट्रोजन एवं प्रोजेस्ट्रोन को पैदा करती है. किशोरावस्था से प्रत्येक माह स्त्री के एक अंडकोश से केवल एक अंडा परिपक्व होकर बाहर निकलता है जो सुई के नोंक के बराबर होता है. यदि अंडा पुरुष के शुक्राणु से मिलकर निषेचित हो जाता तो महिला गर्भवती हो जाती अन्यथा नष्ट् होकर मासिक धर्म के दौरान बाहर निकल जाता है.
6. यौन झिल्ली ( हाईमन)- यह वह झिल्ली है जिससे योनि के भीतरी मुंह का कुछ हिस्सा बन्द रहता है. सामान्यतः यह् झिल्ली, प्रथम यौन संभोग के दौरान फट जाती है जिसके कारण इसे स्त्री के कौमार्य के साथ जोडा जाता है. हालॉकि यह झिल्ली विभिन्न तरह के शारीरिक क्रियांओं और दुर्घटनाओ के दौरान भी फट सकती है. कभी-कभी यह इतनी लचीली होती है कि संभोग के दौरान भी नहीं फटती और कुछ स्त्रीयों में तो यह जन्म से हीं मौजूद नहीं होती. अतः इसे स्त्रीयों के कौमार्य के साथ जोडा जाना एक सामाजिक भ्रांति है.
पुरुष प्रजनन तंत्र की संरचना
पुरुष के वे अंग जो प्रजनन क्रिया में भाग लेते हैं पुरुष प्रजनन अंग कहलाते हैं. ये मुख्यतः दो प्रकार के होते है.
1. बाह्य प्रजनन अंग
2. अंदरुनी प्रजनन अंग
बाह्य प्रजनन अंगः
शिश्नः यह पुरुष का वह प्रजनन अंग है जो संभोग क्रिया में भाग लेता है. जब पुरुष को यौन उत्तेजना होती है तो उसके शिश्न के नसों मे खुन भर जाता है. शिश्न बडे आकार का होकर सख्त और कडा हो जाता है. उत्तेजना की चरम स्थिती मे वीर्यपात हो सकता है और यदी इस दौरान पुरुष का शुक्राणु, स्त्री के अंडाणु से मिल जाता तो स्त्री गर्भवती हो जाती है.
अंडकोष की थैलीः यह वह भाग है जो थैली के रुप में शिश्न के नीचे स्थित होती है जिसमें दो अंडकोष होते हैं. थैली अंडकोष को सुरक्षित रखती है तथा शुक्राणु उत्पादन के लिए अंडकोष को समुचित वातावरण प्रदान करती है.
अंडकोषः ये दो गोलाकार या अंडाकार ग्रंथियां होती हैं जो जन्म के समय से अंडकोष थैली में रहती है. यह किशोरावस्था से शुक्राणु बनाती है तथा पुरुष हर्मोन्स टेस्टोस्टेरोन का उत्पादन करतीं हैं.
अंदरुनी प्रजनन अंगः
शुक्राणु नलीः यह वह मार्ग हैं जिससे शुक्राणु बाहर आते हैं. यह नली अंडकोष को शिश्न के साथ जोडती है जो पेशाब नली से मिल जाती है. हॉलाकि, पेशाब नली से एक बार में या तो पेशाब या यौन उत्तेजना के समय केवल वीर्य हीं बाहर निकल सकता है.
शुक्राणु पुरुष की यौन कोशिकाएं हैं और ये इतने छोटे होते हैं कि इन्हें केवल सुक्ष्मदर्शी से हीं देखा जा सकता है. इनका आकर टैडपौल ( मेढक शिशु ) जैसा होता है तथा इनकी गति इनकी पूंछ के द्वारा निर्धारित होती है.
शुक्राणु, 12-14 वर्ष की आयु में बनने शुरु होते हैं और एक वीर्यपात में इनकी संख्या 20-50 करोड होती है. लेकिन इसमें से केवल एक शुक्राणु हीं स्त्री के अंडे के निषेचन के लिए प्रयाप्त होता है.
वीर्य- वह द्रव्य है जिसमें शुक्राणु तैरते हैं तथा पोषण प्राप्त करते हैं. वीर्यपात के दौरान वीर्य शुक्राणुओं के साथ पुरुष शिश्न से बाहर निकलते हैं.
पेशाब की नलीः यह वह नलिका है जो मुत्राशय से शुरु होकर शिश्न के अग्र भाग से एक छिद्र के माध्यम से पेशाब और वीर्य बाहर निकालती है. यह ध्यान देने वाली बात है कि पेशाब और वीर्य दोनो एक साथ बाहर नहीं निकल सकते
It is not enough or important for any higher test.it is easy to explain .it is not deep for reading any students
ReplyDelete