35ए को लेकर फिर शुरू हुई बहस, क्या है ये अनुच्छेद और जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए क्यों है इसका महत्व?
जम्मू-कश्मीर / 35ए को लेकर फिर शुरू हुई बहस, क्या है ये अनुच्छेद और जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए क्यों है इसका महत्व?
कश्मीर में तैनात होंगे 10 हजार अतिरिक्त जवान
अटकलें हैं कि सरकार कर रही 35ए को हटाने की तैयारी
महबूबा मुफ्ती ने इसे बारूद से खेलना बताया
विशेष परिस्थिति में संविधान में जोड़ा गया था 35ए
नेशनल डेस्क. केंद्र सरकार ने हाल ही में कश्मीर में 10 हजार अतिरिक्त जवानों की तैनाती शुरू कर दी है। जिसके बाद अटकलें लगाई जा रही हैं किसरकार राज्य से अनुच्छेद 35ए हटाने की तैयारी कर रही है। उधर इस फैसले सेपीडीपी अध्यक्ष और राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती भड़क गईं और उन्होंने ऐसी किसी भी कोशिश कोबारूद के ढेर से खेलने वाला बताया। मुफ्ती ने धमकी देते हुए कहा कि जो कोई भी 35ए को छूने की कोशिश करेगा, उसके न केवल हाथ, बल्कि पूरा शरीर जलकर राख हो जाएगा। हालांकि सरकार का कहना है कि पाकिस्तानी आतंकियों की हमले की तैयारी को देखते हुए राज्य में जवानों की संख्या बढ़ाने का फैसला लिया गया है।
क्या है अनुच्छेद 35ए
भारतीय संविधान का आर्टिकल 35A वो विशेष व्यवस्था है, जो जम्मू-कश्मीर विधानसभा द्वारा परिभाषित राज्य के मूल निवासियों (परमानेंट रेसीडेंट) को विशेष अधिकार देती है।इस आर्टिकल को मई 1954 में विशेष स्थिति में दिए गए भारत के राष्ट्रपति के आदेश से जोड़ा गया था। 35A भी उसी विवादास्पद आर्टिकल 370 का हिस्सा है, जिसके जरिए जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा दिया गया है। 17 नवंबर 1956 को अस्तित्व में आए जम्मू और कश्मीर संविधान में मूल निवासी को परिभाषित किया गया है। इसके मुताबिक वही व्यक्ति राज्य का मूल निवासी माना जाएगा, जो 14 मई 1954 से पहले राज्य में रह रहा हो, या जो 10 साल से राज्य में रह रहा हो और जिसने कानून के मुताबिक राज्य में अचल संपत्ति खरीदी हो। सिर्फ जम्मू-कश्मीर विधानसभा ही इस अनुच्छेद में बताई गई राज्य के मूल निवासियों की परिभाषा को दो तिहाई बहुमत से कानून बनाते हुए बदल सकती है।
35A के अंतर्गत मूल निवासियों को मिले अधिकार
इस आर्टिकल के मुताबिक जम्मू-कश्मीर के बाहर का कोई व्यक्ति राज्य में ना तो हमेशा के लिए बस सकता है और ना ही संपत्ति खरीद सकता है। जम्मू-कश्मीर के मूल निवासी को छोड़कर बाहर के किसी व्यक्ति को राज्य सरकार में नौकरी भी नहीं मिल सकती।
बाहर का कोई व्यक्ति जम्मू-कश्मीर राज्य द्वारा संचालित किसी प्रोफेशनल कॉलेज में एडमिशन भी नहीं ले सकता और ना ही राज्य सरकार द्वारा दी जाने वाली कोई मदद ले सकता है।
राज्य की कोई महिला बाहर के किसी व्यक्ति से शादी करती है तो राज्य में मिले उसे सारे अधिकार खत्म हो जाते हैं। लेकिन राज्य का कोई पुरुष अगर बाहर की किसी महिला से शादी करता है, तो उसके अधिकार खत्म नहीं होते। उस पुरूष के साथ ही उसके होने वाले बच्चों के भी अधिकार कायम रहते हैं।
संविधान में ये भी बताया गया कि सिर्फ जम्मू-कश्मीर विधानसभा ही राज्य के मूल निवासियों की परिभाषा को दो तिहाई बहुमत से कानून बनाते हुए बदल सकती है।
संसद की सहमति के बिना लाया गया अनुच्छेद 35ए
अनुच्छेद 35ए को आजादी मिलने के सात साल बाद यानी 14 मई 1954 को संविधान में जोड़ा गया था। इसे जोड़ने का आधार साल 1952 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला के बीच हुआ '1952 दिल्ली एग्रीमेंट' था। जिसमें जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में भारतीय नागरिकता के फैसले को राज्य का विषय माना गया। (1965 से पहले तक जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल को सदर-ए-रियासत और मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री ही कहा जाता था)
इस अनुच्छेद को केंद्रीय मंत्रिमंडल की सिफारिश पर तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के आदेश के बाद संविधान में जोड़ा गया था। जो कि नियमों के हिसाब से गलत था। क्योंकि भारत के संविधान के अनुच्छेद 368 के मुताबिक संविधान में कोई भी संशोधन सिर्फ संसद की मंजूरी से ही हो सकता है।
भारत के संविधान ने यहां के नागरिकों को देश के किसी भी हिस्से में जाकर बसने, वहां संपत्ति खरीदने और बेचने की इजाजत देता है। शेख अब्दुल्ला कश्मीर में ये सब नहीं चाहते थे, इसी वजह से उन्होंने जवाहरलाल नेहरू से बात करते हुए दिल्ली एग्रीमेंट कर संविधान में संशोधन की मांग रखी।
1954 में जब ये संविधान का हिस्सा बना तब नेशनल कॉन्फ्रेंस के बक्शी गुलाम मोहम्मद वहां के प्रधानमंत्री थे। क्योंकि ये आर्टिकल संसद की सहमति के बिना संविधान का हिस्सा बना था, इसी वजह से इसका विरोध करने वाले इसे संविधान विरोधी बताते हैं। जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक दल और वहां के लोग इसे हटाने का विरोध इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि इसके हटते ही देश के अन्य राज्यों में रहने वाले लोगों को भी वहां संपत्तियां खरीदने का अधिकार मिल जाएगा।
शर्तों के साथ भारत से मिला था जम्मू-कश्मीर
1947 में जब भारत और पाकिस्तान अलग हुए थे, उस वक्त जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने दोनों में से किसी भी देश में शामिल ना होकर अलग देश के रूप में रहने का फैसला किया था। लेकिन इसी बीच पाकिस्तानी सेना ने पश्तून कबाइलियों के नेतृत्व में जम्मू-कश्मीर पर हमला कर दिया, जिसके बाद हरि सिंह ने भारत सरकार से मदद मांगी। इसके बाद दोनों के बीच एक समझौता हुआ, जिसके तहत जम्मू-कश्मीर के रक्षा, संचार और विदेश मामलों से जुड़े फैसले लेने का अधिकार भारत के पास आ गया। 26 अक्टूबर 1947 को जम्मू-कश्मीर का विलय भारत के साथ हुआ था। 1950 में भारतीय संविधान में जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जे के साथ शामिल कर लिया गया।
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