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मेहरानगढ़ किले का इतिहास और जानकारी | Mehrangarh Fort History Hindi

Mehrangarh Fort in Hindi/ मेहरानगढ़ किला भारत के राजस्थान में स्थित एक प्राचीन विशालकाय किला हैं जिसे जोधपुर का क़िला (Jodhpur ka Qila) भी कहा जाता है। यह भारत के समृद्धशाली अतीत का प्रतीक है। मेहरानगढ़ किला एक बुलंद पहाड़ी पर 150 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह शानदार किला राव जोधा द्वारा 1459 ई0 में बनाया गया था। मेहरानगढ़ क़िला पहाड़ी के बिल्‍कुल ऊपर बसे होने के कारण राजस्थान राज्य के सबसे ख़ूबसूरत क़िलों में से एक है।
मेहरानगढ़ किले की जानकारी – Mehrangarh Fort Jodhpur Information in Hindi
राजस्थान में कई और भी ऐतिहासिक इमारतें मौजूद हैं। लेकिन जोधपुर का मेहरानगढ़ किला इनमे सबसे ख़ास है। 400 फीट की ऊंची बिल्कुल सीधी खड़ी चट्टान पर स्थित यह किला भारत के सबसे भव्य और विशाल इमारतों में से एक है। किले से जोधपुर का बेहतरीन नजारा और पाकिस्तान एकदम साफ दिखता है। इस किले के बार में यह भी कहा जाता है कि साल 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच लड़ाई के दौरान सबसे पहले मेहरानगढ़ के किले को टारगेट किया गया था। यह किला दिल्ली के कुतुब मीनार की ऊंचाई (73मीटर) से भी ऊंचा है। इस किले को देखने के लिए साल भर पूरे भारत के साथ-साथ विदेश के लोग आते हैं।

मेहरानगढ़ किला की दीवारें 10 किलोमीटर तक फैली है। इनकी ऊंचाई 20 फुट से 120 फुट तथा चौड़ाई 12 फुट से 70 फुट तक है। इसके परकोटे में किलाम रास्तों वाले सात आरक्षित किला बने हुए थे। घुमावदार सड़कों से जुड़े इस किले के चार दरवाजे हैं। कई हॉलीवुड और बॉलीवुड फिल्मों को किले में शूट किया गया है जिसमें फिल्म द डार्क नाइट राइजेस का नाम भी शामिल है। हॉलीवुड एक्ट्रेस लिज हर्ले ने भी साल 2007 में इसी किले में शादी की थी।

मेहरानगढ़ किले का इतिहास – Mehrangarh Fort Jodhpur History in Hindi
राव जोधा जी को अपने पिता की मृत्यु के बाद मंडोर का राज्य खोना पड़ा तब वे लगातार पंद्रह सालों तक मेवाड़ की फौजों से युद्ध करते रहे और 1453 ई. में उन्होंने मंडोर पर अधिकार किया। जिसके लिए राव जोधा उत्तराधिकारी बने थे। राव जोधा जोधपुर के राजा रणमल की 24 संतानों मे से एक थे। शासन की बागडोर सम्भालने के एक साल बाद राव जोधा को लगने लगा कि मंडोर का किला असुरक्षित है। उन्होने अपने तत्कालीन किले से 9 किलोमीटर दूर एक पहाड़ी पर नया किला बनाने का विचार प्रस्तुत किया। इस पहाड़ी को भोर चिडिया के नाम से जाना जाता है, क्योंकि वहां बहुत से पक्षी रहते थे, राव जोधा ने 12 मई 1459 को इस पहाडी पर किले की नीव डाली महाराज जसवंत सिंह (1638-78) ने इसे पूरा किया।


 
जब किले के निर्माण से पहले यहां एक साधु रहते थे। वह एक पानी के सोते के पास रहते थे। जब राजा ने उन्हें जाने के लिए कहा, तब शाप देते हुए साधु कहा कि जिस पानी के लिए तुम मुझे हटा रहे हो वह सूख जाएगा। तब से किले के आसपास के इलाके में पानी की लगातार कमी बनी रही थी। राजा के माफी मांगने पर साधु ने एक उपाय बताया। उन्होंने कहा कि शाप को खत्म करने के लिए राज्य के किसी व्यक्ति को अपनी इच्छा से किले के नीचे जिंदा दफन होकर अपने जीवन की बलि देनी पड़ेगी।

जब राजा किसी को ढूंढने में विफल रहे, तब राजाराम मेघवाल नाम के एक व्यक्ति अपने प्राणों की आहुति देने के लिए आगे आए। तब राजाराम मेघवाल को एक शुभ दिन और एक शुभ स्थान पर जिंदा दफनाया गया ताकि मेहरानगढ़ किले की नींव रखी जा सके। राजाराम मेघवाल के बलिदान को श्रद्धांजलि देने के लिए किले में उनकी कब्र के ऊपर बलुआ पत्थर का स्मारक बनाया गया। इस स्मारक में राजाराम का नाम, उनके बलीदान की तारीख और अन्य जानकारियां एक पत्थर पर लिखी गई हैं, ताकि आने वाले समय में उनके बारे में बताया जा सके।

किले में सात दरवाजे हैं, जिन्हें पोल भी कहा जाता है। इनमें से एक जय पोल का निर्माण महाराजा मान सिंह ने 1806 में जयपुर और बीकानेर पर युद्ध में मिली जीत की खुशी में किया था। किले का अंतिम द्वार लोह पोल के बाईं ओर जौहर करने वाली रानियों के हाथों के निशान हैं। यहां 15 से ज्यादा रानियों की हाथों के निशान हैं, जिन्होंने 1843 में अपने पति महाराजा मान सिंह की मौत के बाद जौहर ले लिया था। किंवदंतियों की मानें तो, इस घटना से पहले भी 1731 में महाराजा अजीत सिंह की छह रानियों और 58 पटरानियों ने राजा के निधन के बाद जौहर कर लिया था।

मेहरानगढ़ किले की वास्तुकला – Architecture Of The Fort in Hindi
राव जोधा द्वारा सन 1459 में सामरिक दृष्टि से बनवाया गया यह क़िला प्राचीन कला, वैभव, शक्ति, साहस, त्याग और स्थापत्य का अनूठा नमूना है। यह विशालकाय किला, पथरीली चट्टान पहाड़ी पर, मैदान से 150 मीटर ऊँचाई पर स्थित है और आठ द्वारों व अनगिनत बुर्जों से युक्त दस किलोमीटर लंबी ऊँची दीवार से घिरा है। बाहर से अदृश्य, घुमावदार सड़कों से जुड़े इस किले के चार द्वार हैं। किले के अंदर कई भव्य महल, अद्भुत नक्काशीदार किवाड़, जालीदार खिड़कियाँ और प्रेरित करने वाले नाम हैं। इनमें से उल्लेखनीय हैं मोती महल, फूल महल, शीश महल, सिलेह खाना, दौलत खाना आदि। इन महलों में भारतीय राजवेशों के साज सामान का विस्मयकारी संग्रह निहित है। इसके अतिरिक्त पालकियाँ, हाथियों के हौदे, विभिन्न शैलियों के लघु चित्रों, संगीत वाद्य, पोशाकों व फर्नीचर का आश्चर्यजनक संग्रह भी है। परकोटे की ऊँचाई 20 फुट से 120 फुट तथा चौड़ाई 12 फुट से 70 फुट तक है। परकोटे में दुर्गम मार्गों वाले सात आरक्षित दुर्ग बने हुए थे।

इस किले में कुल सात दरवाजे है, जिनमे जयपाल (अर्थ – जीत) गेट का भी समावेश है, जिसे महाराजा मैन सिंह ने जयपुर और बीकानेर की सेना पर मिली जीत के बाद 1806 ईस्‍वी में बनाया था। फत्तेहपाल (अर्थ – जीत) गेट का निर्माण महाराजा अजित सिंह ने मुगलो पर जीत की याद में बनाया था। किले पर पाए जाने वाले हथेली के निशान आज भी हमें आकर्षित करते है।


 
दुर्ग के भीतर राजप्रासाद स्थित है। दुर्ग के भीतर सिलहखाना (शस्त्रागार), मोती महल, जवाहरखाना आदि मुख्य इमारतें हैं। क़िले के उत्तर की ओर ऊँची पहाड़ी पर थड़ा नामक एक भवन है जो संगमरमर का बना है। यह एक ऊँचे -चौड़े चबूतरे पर स्थित है।

यहां जोधपुर नरेश जसवंतसिंह सहित कई राजाओं के समाधि स्थल बने हुए हैं। जोधपुर की एक विशेषता यहाँ की कृत्रिम झीलें और कुएँ हैं, जिनके अभाव में इस इलाके में नगर की कल्पना नहीं की जा सकती थी। मेहरानगढ़ के क़िले का एक कुआँ तो 135 मीटर गहरा है। इस सारी व्यवस्था के बावजूद वहाँ जल का अभाव सदैव महसूस किया जाता था। कहा जाता हैं इसके पीछे एक श्राप हैं।

यहां आगंतुक दूसरे गेट पर युद्ध के दौरान तोप के गोलों के द्वारा बनाये गये निशानों को देख सकते हैं। कीरत सिंह सोडा, एक योद्धा जो एम्बर की सेनाओं के खिलाफ किले की रक्षा करते हुये गिर गया था, के सम्मान में यहाँ एक छतरी है। छतरी एक गुंबद के आकार का मंडप है जो राजपूतों की समृद्ध संस्कृति में गर्व और सम्मान व्यक्त करने के लिए बनाया जाता है।

मोती महल, जिसे पर्ल पैलेस के रूप में भी जाना जाता है, किले का सबसे बड़ा कमरा है। यह महल राजा सूर सिंह द्वारा बनवाया गया था, जहां वे अपनी प्रजा से मिलते थे। यहाँ, पर्यटक ‘श्रीनगर चौकी’, जोधपुर के शाही सिंहासन को भी देख सकते हैं। यहाँ पाँच छिपी बाल्कनी हैं जहां से राजा की पाँच रानियाँ अदालत की कार्यवाही सुनती थी।

फूल महल मेहरानगढ़ किले के विशालतम अवधि कमरों में से एक है। यह महल राजा का निजी कक्ष था। इसे फूलों के पैलेस के रूप में भी जाना जाता है, इसमें एक छत है जिसमें सोने की महीन कारीगरी है। महाराजा अभय सिंह ने 18 वीं सदी में इस महल का निर्माण करवाया। माना जाता है कि मुगल योद्धा, सरबुलन्द खान पर राजा की जीत के बाद अहमदाबाद से यह सोना लूटा गया था। शाही चित्र और रागमाला चित्रकला महाराजा जसवंत सिंह द्वितीय के शासनकाल के दौरान महल में लाये गये थे।


 
शीशा महल सुंदर शीशे के काम से सजा है। आगंतुक शीशा महल में चित्रित धार्मिक आकृतियों के काम को देख सकते हैं। इसे ‘शीशे के हॉल’ के रूप में भी जाना जाता है। एक तखत विला, जिसे तखत सिंह द्वारा बनवाया गया था, भी देखा जा सकता है। ये जोधपुर के अंतिम शासक और मेहरानगढ़ किले का निवासी थे। विला का वास्तुशिल्प पारंपरिक और औपनिवेशिक दोनों शैलियों को प्रदर्शित करता है।

झाँकी महल, जहाँ से शाही महिलायें आंगन में हो रहे सरकारी कार्यवाही को देखती थीं, एक सुंदर महल है। वर्तमान में, यह महल शाही पालनों का एक विशाल संग्रह है। ये पालने, गिल्ट दर्पण और पक्षियों, हाथियों, और परियों की आकृतियों से सजे हैं।

लोह पोल जो की किले का अंतिम द्वार है जो किले के परिसर के मुख्य भाग में बना हुआ है। इसके बायीं तरफ ही रानियो के हाँथो के निशान है, जिन्होंने 1843 में अपनी पति, महाराजा मान सिंह के अंतिम संस्कार में खुद को कुर्बान कर दिया था।

चामुँडा माता – Chamunda Mataji Temple in Hindi
राव जोधा को चामुँडा माता मे अथाह श्रद्धा थी। चामुंडा जोधपुर के शासकों की कुलदेवी होती है। राव जोधा ने 1460 मे मेहरानगढ किले के समीप चामुंडा माता का मंदिर बनवाया और मूर्ति की स्थापना की। मंदिर के द्वार आम जनता के लिए भी खोले गए थे। चामुंडा माँ मात्र शासकों की ही नहीं बल्कि अधिसंख्य जोधपुर निवासियों की कुलदेवी थी और आज भी लाखों लोग इस देवी को पूजते हैं। नवरात्रि के दिनों मे यहाँ विशेष पूजा अर्चना की जाती है।

किला किस पहाड़ी पर बना हुआ है –
इस पहाड़ी को भोर चिडिया के नाम से जाना जाता है, क्योंकि वहां बहुत से पक्षी रहते थे.
 
जोधपुर का किला किसने बनवाया
यह शानदार किला राव जोधा द्वारा 1459 ई0 में बनाया गया था।

मेहरानगढ़ किले तक कैसे पहुँचे – How To Reach Mehrangarh Fort in Hindi
जोधपुर शहर भारत के सभी प्रमुख शहरों के साथ रेल, सड़क और हवाई नेटवर्क से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है, इसलिए यहां जाने में कोई परेशानी नहीं होगी। यहां का निकटतम रेलवे स्टेशन ‘राय का बाग’ रेलवे स्टेशन है। यहां आने के लिए कई डीलक्स और एक्सप्रेस बस सेवाएं उपलब्ध हैं। अगर आप शहर की यात्रा करना चाहते हैं तो ऑटो रिक्शा, बस, साइकिल रिक्शा या कैब की मदद ले सकते हैं।

मेहरानगढ़ किले के बारे में रोचक तथ्य – Interesting Facts about Mehrangarh Fort in Hindi
•यह किला दिल्ली के कुतुब मीनार की ऊंचाई से भी 73 मीटर ऊंचा है। किले के परिसर में चामुंडा देवी का मंदिर भी है। स्थानीय लोगों की मान्यता है कि देवी इसी किले से पूरे शहर की निगरानी रखती हैं।
•इस किले के एक योद्धा कीरत सिंह सोडा के सम्मान में यहाँ एक छतरी भी बनाई गई है। छतरी एक गुंबद के आकार का मंडप है जो राजपूतों की समृद्ध संस्कृति में गर्व और सम्मान व्यक्त करने के लिए बनाया जाता है।
•जब आप इस किले को देखने के लिए जायेंगे तो इसके मुख्य द्वार के सामने आपको कुछ लोग लोक नृत्य करते नजर आयेंगे।
•किले के अन्दर के एक हिस्से को संग्रहालय में बदल दिया गया, जहाँ पर शाही पालकियों का एक बड़ा समावेश देखने को मिलता है।
•इस संग्रहालय में 14 कमरे हैं, जो शाही हथियारों, गहनों और वेशभूषाओं से सजे हैं।


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