Video Link - https://youtu.be/w1ceklFQhpI Tags - Rajasthan Explore,nimbahera,nimbahera rajasthan,nimbahera vlog,places to visit in rajasthan,rajasthan,rajasthan tour,rajasthan tourism,rajasthan tourist places,rajasthan travel guide,rajasthan trip
Konark Sun Temple / कोणार्क का सूर्य मंदिर भारत के उड़ीसा राज्य के पुरी ज़िले के कोणार्क नामक क़स्बे में स्थित है। यह भव्य मंदिर सूर्य देवता को समर्पित है और भारत का प्रसिद्घ तीर्थ स्थल है। इस सूर्य मंदिर का निर्माण राजा नरसिंहदेव ने 13वीं शताब्दी में करवाया था। यह मंदिर अपने विशिष्ट आकार और शिल्पकला के लिए दुनिया भर में जाना जाता है। सूर्य मंदिर अपने निर्माण के 750 साल बाद भी अपनी अद्वितीयता, विशालता व कलात्मक भव्यता से हर किसी को निरुत्तर कर देता है। यह मंदिर UNESCO वर्ल्ड हेरिटेज साईट में भी शामिल है।
कोणार्क शब्द, ‘कोण’ और ‘अर्क’ शब्दों के मेल से बना है। अर्क का अर्थ होता है सूर्य जबकि कोण से अभिप्राय कोने या किनारे से रहा होगा। कोणार्क का सूर्य मंदिर पुरी के उत्तर पूर्वी किनारे पर समुद्र तट के क़रीब निर्मित है। यह मंदिर एक बेहद विशाल रथ के आकार में बना हुआ है। इसलिए इसे भगवान का रथ मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
कोणार्क सूर्य मंदिर का इतिहास – Konark Sun Temple History in Hindi
इस मंदिर को लाल बलुआ पत्थर एवं काले ग्रेनाइट पत्थर से 1236- 1264 ई.पू. में गंग वंश के राजा नृसिंहदेव द्वारा बनवाया गया था। यह मंदिर, भारत की सबसे प्रसिद्ध स्थलों में से एक है। कलिंग शैली में निर्मित यह मंदिर सूर्य देव(अर्क) के रथ के रूप में निर्मित है। इस को पत्थर पर उत्कृष्ट नक्काशी करके बहुत ही सुंदर बनाया गया है। संपूर्ण मंदिर स्थल को एक बारह जोड़ी चक्रों वाले, सात घोड़ों से खींचे जाते सूर्य देव के रथ के रूप में बनाया है। जैसा की हिन्दू मान्यता के अनुसार सूर्य देवता के रथ में बारह जोड़ी पहिए हैं और रथ को खींचने के लिए उसमें 7 घोड़े जुते हुए हैं।
इस मंदिर को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि अपने सात घोड़े वाले रथ पर विराजमान सूर्य देव अभी-अभी कहीं प्रस्थान करने वाले हैं।मंदिर अपनी कामुक मुद्राओं वाली शिल्पाकृतियों के लिये भी प्रसिद्ध है। यहां सूर्य को बिरंचि-नारायण कहते थे। ऐसा शानदार मंदिर विश्व में शायद ही कहीं हो! इसीलिए इसे देखने के लिए दुनिया भर से पर्यटक यहाँ आते हैं।
16वीं सदी के मध्य में मुग़ल आक्रमणकारी कालापहाड़ ने इसके आमलक को नुक़सान पहुँचाया व कई मूर्तियों को खण्डित किया, जिसके कारण मन्दिर का परित्याग कर दिया गया। इससे हुई उपेक्षा के कारण इसका क्षरण होने लगा। कुछ विद्वान मुख्य मन्दिर के टूटने का कारण इसकी विशालता व डिजाइन में दोष को बताते हैं। जो रेतीली भूमि में बनने के कारण धँसने लगा था, लेकिन इस बारे में एक राय नहीं है।
मुख्य मंदिर तीन मंडपों में बना है। इनमें से दो मण्डप ढह चुके हैं। तीसरे मंडप में जहां मूर्ती थी अंग्रेज़ों ने भारतीय स्वतंत्रता से पूर्व ही रेत व पत्थर भरवा कर सभी द्वारों को स्थायी रूप से बंद करवा दिया था, ताकि वह मंदिर और क्षतिग्रस्त ना हो पाए।
इसके प्रवेश पर दो सिंह हाथियों पर आक्रामक होते हुए रक्षा में तत्पर दिखाये गए हैं। यह सम्भवतः तत्कालीन ब्राह्मण रूपी सिंहों का बौद्ध रूपी हाथियों पर वर्चस्व का प्रतीक है। दोनों हाथी, एक-एक मानव के ऊपर स्थापित हैं। ये प्रतिमाएं एक ही पत्थर की बनीं हैं। ये 28 टन की 8.4 फीट लंबी 4.9 फीट चौड़ी तथा 9 .2 फीट ऊंची हैं। मंदिर के दक्षिणी भाग में दो सुसज्जित घोड़े बने हैं, जिन्हें उड़ीसा सरकार ने अपने राजचिह्न के रूप में अंगीकार कर लिया है। ये 10 फीट लंबे व 7 फीट चौड़े हैं। इसके के प्रवेश द्वार पर ही नट मंदिर है।
ये वह स्थान है, जहां मंदिर की नर्तकियां, सूर्यदेव को अर्पण करने के लिये नृत्य किया करतीं थीं। पूरे मंदिर में जहां तहां फूल-बेल और ज्यामितीय नमूनों की नक्काशी की गई है। इनके साथ ही मानव, देव, गंधर्व, किन्नर आदि की अकृतियां भी एन्द्रिक मुद्राओं में दर्शित हैं। इनकी मुद्राएं कामुक हैं और कामसूत्र से लीं गईं हैं। मंदिर अब अंशिक रूप से खंडहर में परिवर्तित हो चुका है। यहां की शिल्प कलाकृतियों का एक संग्रह, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के सूर्य मंदिर संग्रहालय में सुरक्षित है।
वास्तविक रूप से यह मंदिर एक पवित्र स्थान है, जो 229 फ़ीट (70 मी.) ऊँचा है। इतना ऊँचा होने की वजह से और 1837 में वहाँ विमान गिर जाने की वजह से मंदिर को थोड़ी बहुत क्षति भी पहोची। मंदिर में एक जगमोहन हॉल भी है जो तक़रीबन 128 फ़ीट (30 मी.) लंबा है, और आज भी वह हॉल जैसा के वैसा ही है।
भविष्य पुराण और साम्बा पुराण के अनुसार उस क्षेत्र में इस मंदिर के अलावा एक और सूर्य मंदिर था, जिसे 9 वी शताब्दी या उससे भी पहले देखा गया था। इन किताबो में मुंडीरा (कोणार्क), कलाप्रिय (मथुरा) और मुल्तान में भी सूर्य मंदिर बताये गए है।
कोणार्क मंदिर की अधिक जानकारी – Konark Sun Temple Information in Hindi
सूर्य मंदिर समय की गति को भी दर्शाता है, जिसे सूर्य देवता नियंत्रित करते हैं। पूर्व दिशा की ओर जुते हुए मंदिर के 7 घोड़े सप्ताह के सातों दिनों के प्रतीक हैं। 12 जोड़ी पहिए दिन के चौबीस घंटे दर्शाते हैं, वहीं इनमें लगी 8 ताड़ियाँ दिन के आठों प्रहर की प्रतीक स्वरूप है। कुछ लोगों का मानना है कि 12 जोड़ी पहिए साल के बारह महीनों को दर्शाते हैं। पूरे मंदिर में पत्थरों पर कई विषयों और दृश्यों पर मूर्तियाँ बनाई गई हैं।
मुख्य मन्दिर की संरचना को लेकर अनेक कहानियाँ प्रचलित हैं। कहा जाता है कि जहाँ पर मुख्य मन्दिर था, उसके गर्भगृह में सूर्यदेव की मूर्ति ऊपर व नीचे चुम्बकीय प्रभाव के कारण हवा में दोलित होती थी। प्रात: सूर्य की किरणें रंगशाला से होते हुए वर्तमान में मौजूद जगमोहन से होते हुए कुछ देर के लिए गर्भगृह में स्थित मूर्ति पर पड़ती थीं। समुद्र का तट उस समय मन्दिर के समीप ही था, जहाँ बड़ी नौकाओं का आवागमन होता रहता था। अक्सर चुम्बकीय प्रभाव के कारण नौकाओं के दिशा मापक यन्त्र दिशा का ज्ञान नहीं करा पाते थे। इसलिए इन चुम्बकों को हटा दिया गया और मन्दिर अस्थिर होने से ध्वस्त हो गया। इसकी ख्याति उत्तर में जब मुग़लों तक पहुँची तो उन्होंने इसे नष्ट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
कोणार्क सूर्य मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा – Konark Sun Temple Story in Hindi
कथा के अनुसार भगवान श्री कृष्ण के पुत्र साम्बा ने एक बार नारद मुनि के साथ बेहद अभद्रता के साथ बुरा बर्ताव किया था, जिसकी वजह से उन्हें नारद जी ने कुष्ठ रोग ( कोढ़ रोग) होने का श्राप दे दिया था। वहीं इस श्राप से बचने श्री कृष्ण के पुत्र सांबा ने चंद्रभागा नदी के तट पर मित्रवन के पास करीब 12 सालों तक कष्ट निवारण देव सूर्य का कठोर तप किया था।
वहीं इसके बाद एक दिन जब सांबा चंद्रभागा नदी में स्नान कर रहे थे, तभी उन्हें पानी में भगवान सूर्य देव की एक मूर्ति मिली, जिसके बाद उन्होंने इस मूर्ति को इसी स्थान पर स्थापित कर दिया, जहां पर आज यह विश्व प्रसिद्ध कोणार्क सूर्य मंदिर बना हुआ। सूर्यदेव को सभी रोगों का नाशक माना जाता है।
कोणार्क मंदिर के तथ्य – Konark Sun Temple Facts in Hindi
1). यह कई इतिहासकारों का मत है, कि कोणार्क मंदिर के निर्माणकर्ता, राजा लांगूल नृसिंहदेव की अकाल मृत्यु के कारण, मंदिर का निर्माण कार्य अधूरा रह गया था। इसके कारण, अधूरा ढांचा ध्वस्त हो गया। लेकिन इस मत को एतिहासिक आंकड़ों का समर्थन नहीं मिलता है।
2). यहां बनी मूर्तियों में बड़ी ही खूबसूरती के साथ काम और सेक्स को दर्शाया गया है। यहां बनी मूर्तियां पूर्ण रूप से यौन सुख का आनंद लेती दिखाई गई हैं। इन मूर्तियों को मंदिर के बाहर तक ही सीमित किया गया है ऐसा करने के पीछे कारण ये बताया जाता है कि जब भी कोई मंदिर के गर्भ गृह में जाए तो वो सभी प्रकार के सांसारिक सुखों और मोह माया को मंदिर के बाहर ही छोड़ के आए।
3.) पौराणिक भारत के अलग-अलग प्रान्तों में धर्मिक उत्सवों के दौरान शोभायात्रा में देव मूर्तियों को लकड़ी के बने रथ पर सज़ा कर श्रद्धालुओं के बीच में ले जाया जाता था। इसीलिए यह माना जाता है कि सूर्य के इस मन्दिर को रथ का रूप दे दिया गया होगा।
4). कोणार्क मंदिर का हर एक टुकड़ा अपने-आप में ही विशेष है और लोगो को आकर्षित करता है। इसीलिये कोणार्क सूर्य मंदिर भारत के सात आश्चर्यो में से एक है।
5). इस मंदिर में आज भी रात होते ही नाच करती आत्माओं के पायलों की झंकार सुनाई देती।
6). मंदिर में ऊपरी भाग में एक भारी चुंबक लगाया गया है और मंदिर के हर दो पत्थरो पर लोहे की प्लेट भी लगी है। चुंबक को इस कदर मंदिर में लगाया गया है की वे हवा में ही फिरते रहते है। इस तरह का निर्माणकार्य भी लोगो के आकर्षण का मुख्य कारण है।
Comments
Post a Comment